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आखिरी मुलाकात -08-Jan-2022

वो आखिरी मुलाकात कितनी हसीन थी 
तब पता नहीं था कि हमारी 
ये मुलाकात आखिरी होने वाली है। 
इन हसीन वादियों में हम तब
पंछी बनकर मस्त उड़ा करते थे
झरनों के नीचे थिरकते रहते थे 
पवन के झोंकों की तरह ताजगी भरते थे
नदी के जल की तरह कल कल करते थे 
समय के सुनहरे पन्नों पर हमने 
लिखी थी हमारे प्यार की दास्तान
जो हमने कभी साथ गुनगुनाई थी 
मगर अब ना वो ताजगी है ना संगीत है
कभी ना खत्म होने वाला बस विरह गीत है
तकिये पर आंसुओं की कुछ बूंदें रोज गिरती हैं
और सूख जाती हैं इंतजार करते करते 
उनकी भोली सूरत के दीदार का ।
अब तो कमरे में वो हवा भी नहीं रही
जिसमें उनके बदन की महक बसी हुई थी 
वो कोने में दीवार पर उनकी उंगलियों के निशान 
अभी भी ताजा ताजा रखे हुये हैं सहेजकर
जब उन्होंने मुझे अपने बाजुओं में लेने के लिए
अपनी मजबूत बांहें फैलाई थी 
तब उस मधुर मिलन में सौतन बनकर
मेरी हया हम दोनों के बीच में आयी थी 
ये खिड़की गवाह है जिसने देखा है मुझे 
रोज चुपके चुपके आंसू बहाते हुये 
क्योंकि मैंने इसी खिड़की से देखा था 
उन्हें आखिरी बार , परदेश जाते हुये 
उस अंतिम मुलाकात का वो दृश्य 
इन सूनी आंखों में आज भी कैद है 
शायद अब वही दृश्य मेरे जीवन की 
एकमात्र और अंतिम संपत्ति है । 
उनकी यादों के सहारे ही मैं जी लूंगी
मुन्ने को देख देखकर उम्र ए गम पी लूंगी
रिक्त हृदय की पीड़ा ना पहुंच पाये किसी तक
इसलिए इन होठों को मैं कसकर सी लूंगी 

हरिशंकर गोयल "हरि"
8.1.22 


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